रईस विजय माल्या से भगोड़ा माल्या बनने की पूरी कहानी
एक जमाने में मशहूर शायर निदा फाज़ली साहब कह गए थे – कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता। लेकिन इसके उलट एक ऐसा भी शख्स है जिसे दोनों मिला। उसे जमीं भी मिली और आसमान भी मिला। इस शख्स का नाम है विजय माल्या। आज से तकरीबन दस साल पहले जब भारत के सबसे आमिर लोगों की लिस्ट निकलती थी तब विजय माल्या को हमेशा टॉप 50 के अंदर ही रखा जाता था। और आज हालात ऐसे हो चले हैं कि एक आम आदमी भी लन्दन की सड़कों पर उन्हें चोर-चोर बोल के चिढ़ाते हैं। ऐसा क्या हुआ कि माल्या अर्श से फर्श पर आ गिरा यही बताएँगे आज हम इस स्पेशल केस स्टडी में।
पिताजी से हुई थी शुरुआत
विजय माल्या का जन्म एक बिजनेस फैमिली में हुआ था। विजय माल्या के पिताजी विट्ठल माल्या एक बिजनेसमैन थे। पर विजय माल्या की प्रमुख कंपनी “यूनाइटेड ब्रुअर्स” को विट्ठल माल्या ने स्टार्ट नहीं किया था। उसे साल 1915 स्कॉटलैंड के एक बिजनेसमैन थॉमस लेइश्मन ने स्टार्ट किया था। विजय माल्या के पिताजी विठल माल्या 22 साल की उम्र में ही “यूनाइटेड ब्रुअर्स” को ज्वाइन किया था। और साल 1946-47 से विट्ठल माल्या ने “यूनाइटेड ब्रुअर्स” के स्टॉक को एक्वायर करना शुरू किया। यानि यूनाइटेड ब्रुअरीज में मालिकाना हक़ लेना शुरू किया।
श्रीमान विठ्ठल माल्या यूनाइटेड ब्रुअरीज के पहले इंडियन डायरेक्टर बने और 1948 में विठ्ठल माल्या यूनाइटेड ब्रुअरीज के चेयरमैन बन गए। फिर साल 1952 से विठ्ठल माल्या ने ब्रुअरीज और डिस्टिलरी बिजनेस को भी खरीदना शुरू कर दिया। बिजनेस में तकदीर को चमकते कभी-कभी देर नहीं लगती, तो यहाँ भी नहीं लगी और धीरे-धीरे विट्ठल माल्या ने पॉलीमर, बैटरी, फार्मा और फूड्स इन सभी बिजनेस को भी इसमें जोड़ दिया।
जब विरासत में मिला 350 करोड़ का बिजनेस
साल 1983 में जब विट्ठल माल्या की अचानक डेथ हो गई तो उसके बाद सिर्फ 27 साल का विजय माल्या यूनाइटेड ब्रुअरीज ग्रुप का चेयरमैन बना। जब विट्ठल माल्या की डेथ हुई तब उसके बिजनेस का टर्नओवर करीब 350 करोड़ रूपये का था। चेयरमैन बनने के बाद विजय माल्या ने अपना दिमाग दौड़ाया और इंजीनियरिंग, न्यूजपेपर और केमिकल जैसे बिजनेस में भी हाथ आजमाकर देखा। इसमें मिली कुछ सक्सेस और फेल्योर्स के बाद जल्द ही विजय माल्या को समझ आया कि असली मार्केट तो लिकर और बियर के बिजनेस में है। इसके बाद उसने अपना पूरा ध्यान लिकर और बियर के बिजनेस पर लगा दिया।
भले ही विजय माल्या को इतना बड़ा बिजनेस अम्पायर विरासत में मिला हो लेकिन इसका कभी भी उसके दुरुपयोग नहीं किया और बिजनेस को प्रोफेशनली आगे बढ़ाया। विजय माल्या शुरू से ही हार्ड-वर्किंग और अम्बिशयस था। बिजनेस से ही हर मुकाम को हासिल किया जा सकता है यह बात उन्हें जल्दी ही समझ में आ गयी थी। विजय माल्या के लीडरशिप में “यूनाइटेड ब्रुअरीज” को लिकर और बियर इन दोनों के बिजनेस में काफी बढ़ोतरी होने लगा। फिर विजय माल्या का बिजनेस माइंड दौड़ा और अब वो “यूनाइटेड ब्रुअरीज” के ग्लोबल एक्सपेंशन पर काम करने लगा।
विजय माल्या – द मास्टरमाइंड ऑफ़ बिजनेस
विजय माल्या अपने मार्केटिंग स्किल्स से अपने ब्रांड को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना चाहते थे और उसमे वो ख़ासा कामयाब भी हुए। इंडिया में लिकर के प्रचार पर बैन है। इसे आप डायरेक्ट प्रचारित नहीं कर सकते हैं। इसलिए विजय माल्या ने किंगफ़िशर कैलेंडर, इवेंट्स इत्यादि जैसे टेक्निक्स का इस्तेमाल करके लोगों का ध्यान किंगफिशर की तरफ अट्रैक्ट किया। किंगफिशर के कैलेण्डर पर हॉट मॉडल्स का कॉन्सेप्ट भी यहीं से आया था। आज बॉलीवुड की सबसे चर्चित हिरोईन दीपिका पादुकोण भी पहले किंगफिशर कैलेण्डर का हिस्सा रह चुकी है। जिस तरह से विजय माल्या ने अपने आईपीएल टीम का नाम रखा था उससे आपको विजय माल्या के मार्केटिंग स्किल्स की आईडिया आ जाएगी। क्योंकि उनके टीम का नाम है “रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर” और हम सब जानते हैं कि रॉयल चैलेन्ज के नाम का एक शराब भी है। तो इस तरह से विजय माल्या लिकर के दुनिया पर पूरी तरह से छा गया था।
फिर आता है साल 2005। इस साल “यूनाइटेड ब्रुअरीज” दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शराब बनाने वाली कंपनी बनी। फोर्ब्स में छपी रिपोर्ट के अनुसार साल 2007 में विजय माल्या भारत के चालीसवें सबसे ज्यादा अमीर व्यक्ति थे। यह सिलसिला चलता रहा और आने वाले सालों में माल्या कभी में फोर्ब्स की लिस्ट में टॉप 100 से बाहर नहीं गया। अपने बिजनेस इंटेलिजेंस और हार्ड वर्क से विजय माल्या ने यूनाइटेड ब्रुअरीज को बहुत बड़ा बिजनेस बना दिया था। विजय माल्या को बिजनेस में अपार सफलता मिलने के बाद अमेरिका के साउथर्न कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ने उन्हें बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में डॉक्टरेट की मानद डिग्री दी। विजय माल्या को फ्रांस का हाईएस्ट सिविलियन अवार्ड “लीजन डी-ऑनर” भी मिला है।
जब माल्या ने एंटर किया एयरलाइन्स के बिजनेस में
साल 2005 में विजय माल्या ने अपने बेटे सिद्धार्थ माल्या के 18वीं जन्मदिन पर किंगफिशर एयरलाइंस लॉन्च की। एयरलाइन्स बिजनेस एक बहुत ही कैपिटल इंटेंसिव बिजनेस है। मतलब यह हुआ कि इसको चलने के लिए बहुत ज्यादा पैसे की जरुरत पड़ती है। विजय माल्या हवाई सफर को लग्जरियस और आलिशान बनाना चाहते थे। विजय माल्या ने अपने पैसेंजर्स को आलिशान सुविधाएँ देना शुरू किया और अपने सारे स्टाफ को भी इस बारे में कायदे से बता दिया बता दिया था कि सारे ट्रैवेलर्स को अच्छे से ख्याल रखा जाए। विजय माल्या ने किंगफिशर एयरलाइन्स के पैसेंजर्स के सटिस्फैक्शन पर पूरा ध्यान दिया। ट्रैवेलर्स को भी किंगफ़िशर एयरलाइन्स का ये अनोखा तरीका पसंद आया। किंगफिशर एयरलाइन्स तेजी के आगे बढ़ने लगी। जल्द ही लगभग 25% से ज्यादा ट्रैवेलर्स किंगफ़िशर एयरलाइन्स से ट्रेवल करने लगे। और किंगफ़िशर एयरलाइन्स इंडिया की नंबर दो एयरलाइन बन गई। नंबर एक पर अभी भी एयर इंडिया कायम थी।
फिर भी किंगफ़िशर एयरलाइन्स अभी तक प्रॉफिटेबल नहीं थी। किंगफ़िशर एयरलाइन्स की शुरुआती सफलता के बाद 2007 में विजय माल्या ने किंगफ़िशर एयरलाइन्स की इंटरनेशनल फ्लाइट शुरू करने का फैसला किया। पर इंटरनेशनल ऑपरेशन शुरू करने के पहले ये कंडीशन थी कि वो एयरलाइन काम से काम पांच साल पहले शुरू हुई हो। पर किंगफ़िशर को स्टार्ट हुए बस दो ही साल हुए थे। इस कंडीशन को पूरा करने के लिए विजय माल्या ने एयर डेक्कन को ख़रीदा जो कि चार साल पुरानी कंपनी थी पर अब बंद होने के कगार पर थी। उसे खरीदने के बाद विजय माल्या को इंटरनेशनल ऑपरेशन शुरू करने के लिए अब बस एक ही साल रुकना था। किंगफ़िशर एयरलाइन्स पर पहले से बहुत सारा कर्ज था और कंपनी अभी तक प्रॉफिटेबल भी नहीं हुई थी। और अब एयर डेक्कन खरीदने से किंगफ़िशर का कर्ज बहुत ज्यादा बढ़ गया। किंगफ़िशर एयरलाइन्स एक बहुत ही आलिशान एयरलाइन्स कंपनी थी। मतलब ये कि किंगफ़िशर एयरलाइन्स अब आलिशान सफर का पर्याय बन चुका था। किंगफ़िशर के लक्ज़री सुविधाओं की वजह से उसके टिकट के रेट भी ज्यादा थे। वहीं एयर डेक्कन एक कम रेट कि टिकट वाली कंपनी थी।
विजय माल्या ने एयर डेक्कन का नाम बदलकर किंगफ़िशर रेड रख दिया। इससे उसे किंगफ़िशर का ब्रांड मिल गया और उसकी टिकट के रेट भी कम रखे गए। लेकिन माल्या तो माल्या हैं, उह्नें कोई भी आम चीज पसंद ही नहीं आती थी। इसीलिए विजय माल्या किंगफ़िशर रेड में भी धीरे धीरे स्पेशल सर्विसेज प्रोवाइड करने लगा। जिससे ट्रैवेलर्स को अच्छी सर्विसेज कम प्राइस में मिलने लगी। उसके बाद जिस बात का दर था वही हुआ, अब किंगफ़िशर एयरलाइन्स के ट्रैवेलर्स भी किंगफ़िशर रेड से ट्रेवल करने लगे। क्यूंकि उन्हें उन दोनों की सर्विसेज में कुछ ज्यादा फर्क नहीं दिख रहा था। और किंगफ़िशर रेड की प्राइस किंगफ़िशर एयरलाइन्स से कम थी। इसीलिए ट्रैवेलर्स किंगफ़िशर रेड को ही चुनने लगे।
अब कहानी है अंत के शुरुआत की
इन स्पेशल सर्विसेज की वजह से किंगफ़िशर रेड की भी रेट बढ़ने लगे। इसीलिए ट्रैवेलर्स किसी कम प्राइस वाले एयरलाइन्स को चुनने लगे। उसी समय क्रूड आयल की रेट भी बहुत तेजी से बढ़ने लगी। और ये प्राइस 140 USD प्रति बैरल तक पहुंच गया। रुपया की वैल्यू भी कम होने लगी और रिसेशन भी आ गया था। इस सब कारणों से किंगफ़िशर एयरलाइन्स की तकलीफें बहुत ज्यादा बढ़ने लगी। विजय माल्या ने किंगफ़िशर एयरलाइन्स के प्रॉफिटेबल होने से पहले ही इंटरनेशनल ऑपरेशन शुरू किया था। जबकि इंटरनेशनल ऑपरेशन के लिए बहुत ज्यादा पैसा लगता है और कॉम्पिटिशन तो है ही। इससे किंगफ़िशर एयरलाइन्स के खर्च बहुत ज्यादा बढ़ने लगे। आमदनी कम थी और खर्चा बहुत ज्यादा हो रहा था।
विजय माल्या ने किंगफ़िशर एयरलाइन्स की प्रॉफीटाब्लिटी से ज्यादा उसके एक्सपेंशन पर ध्यान दिया था। जब एक्सपेंशन प्लान फ़ैल हुए तो किंगफ़िशर एयरलाइन्स के इतने ज्यादा लॉसेस हो चुके थे कि किंगफ़िशर एयरलाइन्स कभी उससे उभर ही नहीं पाई। जब चीज़ें हाथ से बाहर जाने लगी तब विजय माल्या ने फॉरेन इन्वेस्टर्स को एप्रोच करने लगा। तब गल्फ कंट्री की “एतिहाद एयरवेज” किंगफ़िशर एयरलाइन्स में इन्वेस्ट करने के लिए इंटरेस्टेड थे। लेकिन इसमें भी एक लोचा था, उस टाइम में सिविल एविएशन में FDI मान्य नहीं थे। फिर विजय माल्या ने FDI को मान्य करवाने के लिए भारत सरकार से रिक्वेस्ट भी की लेकिन उसका कुछ फायदा नहीं हुआ। एतिहाद भी गवर्नमेंट की FDI अलाउंस की वेट कर रही थी। इन सारे प्रॉब्लम के चलते विजय माल्या ने किंगफ़िशर रेड बंद कर दी। वहीं किंगफ़िशर एयरलाइन्स की एम्प्लाइज को सात महीने से सैलरी नहीं मिल रही थी। जिसके बाद उन्होंने हड़ताल कर दी। और फिर किंगफ़िशर एयरलाइन्स का ऑपरेशन बंद हो गया ।
किंगफ़िशर के एम्प्लाइज इसलिए भी नाराज़ थे कि जब एम्प्लाइज अपने सैलरी के लिए हडताल पे थे तब विजय माल्या किंगफ़िशर कैलेंडर के लिए मॉडल्स की ऑडिशन ले रहा था। फिर दिसंबर 2012 में किंगफ़िशर एयरलाइन्स का लाइसेंस रद्द हो गया और किंगफ़िशर का बिज़नेस बंद पड़ गया। किंगफ़िशर एयरलाइन्स बंद होने के कुछ दिनों बाद गवर्नमेंट ने सिविल एविएशन में FDI को मान्यता दे दिया। फिर एतिहाद एयरवेज ने जेट एयरवेज में इन्वेस्ट किया। और अब तो वो भी बंद पड़ गया है। कुल मिलकर देखा जाए तो हिंदुस्तान में अभी एयरलाइंस इंडस्ट्री अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहा है।
एयरलाइन्स का बिजनेस बहुत ही कैपिटल इंटेंसिव बिज़नेस है। इसे चलाने के लिए विजय माल्या ने बहुत ज्यादा लोन लिया था। विजय माल्या को अपने प्लान पर पूरा विश्वास था। इसीलिए उसने किंगफिशर एयरलाइन्स के कुल 1500 करोड़ के लोन के लिए पर्सनल गारंटी दी थी। पर जब किंगफ़िशर एयरलाइन्स बंद हो गई और किंगफिशर एयरलाइन्स पर जो करीब 9000 करोड़ रूपये का लोन था उसे वो चुका नहीं पाया और बाद में विजय माल्या ने भी वो लोन नहीं चुकाया जो उसने पर्सनल गारंटी पर लिया था। लोन्स का सेटलमेंट करने के लिए विजय माल्या और बैंक्स के बीच कई सारी मीटिंग्स हुई थी।
जब माल्या ने किया अपने सांसदी वाले पासपोर्ट का गलत इस्तेमाल
किंगफिशर एयरलाइन्स पर करीब 9000 करोड़ का कर्ज था जिसमे में से विजय माल्या बैंक्स का मूलधन 6600 करोड़ देने के लिए तैयार था। लेकिन बैंक्स ने उस ऑफर को रिजेक्ट कर दिया था। स्वाभाविक है कि अब बैंक है तो ब्याज तो चाहिए ही। मार्च, 2016 में विजय माल्या ब्रिटैन भाग गया और आज विजय माल्या लगभग 9000 करोड़ लोन के केस में वांटेड है। जब किंगफिशर एयरलाइन्स बहुत ख़राब कंडीशन से गुजर रही थी तब भी पब्लिक सेक्टर बैंक IDBI ने किंगफिशर एयरलाइन्स को करीब 900 करोड़ रुपये का लोन दिया था बाद में उस IDBI बैंक मैनेजर को अरेस्ट कर लिया गया और उससे पूछताछ कि गयी।
जब तक किंगफिशर एयरलाइन्स अच्छी चल रही थी तब तक तो सबकुछ ठीक था। पर जैसे ही प्रोब्लेम्स आने लगी किंगफिशर एयरलाइन्स लड़खड़ाने लगी। एयरलाइन्स के पास स्ट्रांग मैनेजमेंट नहीं था जो कि प्रोब्लेम्स को हैंडल कर सके और इसका हल निकाल सके। एयरलाइन इंडस्ट्री में प्रॉफिट मार्जिन बहुत कम होती है और एयरलाइन कंपनी को प्रॉफिट में चलाने के लिए बहुत ही ज्यादा मेहनत करने होते हैं। उदाहरण के लिए आप एयर इंडिया को देख सकते हैं। यह एक गवर्नमेंट ओन्ड एयरलाइन कंपनी है। यानी की यह एयरलाइन सरकारी खर्चे पर चलती है। लेकिन यह लगातार पिछले दस से भी ज्यादा सालों से लॉस में चल रही है। एक साल में लगभग तीन हजार करोड़ की लॉस तो आम बात है। इन लॉसेस की वजह से गवर्नमेंट को हमेशा एयर इंडिया को फण्ड प्रोवाइड करना पड़ता है। और ये अमाउंट किंगफिशर एयरलाइन्स के अमाउंट से कई गुना ज्यादा है।
तो यह थी हमारी कम्प्लीट केस स्टडी विजय माल्या के विजनेस अम्पायर के आसमान तक पहुँचने की और फिर धड़ाम से निचे गिरने की।
वीडियो में देखिए किस तरह एक 25 के गैंगस्टर ने उत्तर प्रदेश के सीएम को मारने का प्लान बनाया था:
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