manikarnika film banner by bejod joda

फिल्म रिव्यू: मणिकर्णिका-द क्वीन ऑफ झाँसी

manikarnika film banner by bejod joda

मणिकर्णिका कंगना रनौत का ड्रीम प्रोजेक्ट था

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

– सुभद्रा कुमारी चौहान

कंगना रनौत की पिछली रिलीज थी दो साल पहले आयी रंगून और पिछली हिट थी चार साल पहले आयी तनु वेड्स मनु रिटर्न्स. इस बीच कंगना कई विवादों में भी घिरी रही, जैसे कि लेखक अपूर्व असरानी से सिमरन फिल्म के दौरान हुआ विवाद हो या फिर पुरे बॉलीवुड से नेपोटिज़्म का. पिछले चार-पाँच सालों में कंगना और विवाद एक दूसरे का पर्याय बन चुके हैं. फिर आता है 25 जनवरी 2019 और रिलीज होती  है कंगना रनौत का ड्रीम प्रोजेक्ट – मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ़ झाँसी. आइए जानते हैं क्या खास है फिल्म में.

कहानी क्या कहती है फिल्म

कहानी के तौर पर फिल्म में रानी लक्ष्मीबाई के जन्म से लेकर बचपन और फिर पेशवा बाजीराव द्वितीय से घुड़सवारी और युद्धकला सीखना और आगे चलकर झाँसी के महाराज गंगाधर राव नेवलकर से उनका विवाह होना. ये एक ऐसी कहानी है जिसे हम सभी बचपन से अपने टेक्स्टबुक में पढ़ते आ रहे हैं. आगे चलकर महाराज बीमार पड़ते हैं और स्वर्गवासी हो जाते हैं. रानी को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति भी होती है लेकिन ये खुशी भी ज्यादा दिन तक नहीं चलती है और बच्चे की असमय मृत्यु हो जाती है. फिर गंगाधर एक बच्चे को गोद लेता है और उसे अपना दत्तक पुत्र बनाता है. उस बच्चे का नाम भी वह वही रखता है जो पहले बच्चे का नाम था – दामोदर राव.

Jhansi ki rani with child damodar rao

अब अंग्रेजों का आक्रमण लगातार बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में सबसे यही उम्मीद रहती है कि परंपरा के अनुसार अब विधवा रानी अपने दत्तक पुत्र को लेकर बनारस चली जाएगी. लेकिन हुआ उल्टा, रानी ने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए अपनी फौज बनानी शुरू कर दी. इस फौज में पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाओं ने भी अपनी हिस्सेदारी दिखाई. रानी अंग्रेजों के एक पल्टन से लोहा लेने के बाद ग्वालियर की तरफ मुड़ी. जहाँ के महाराज सिंधिया पहले ही अपना राजपाट अंग्रेजों को सौंप कर उनके दोस्त बन गए थे. फिर भी रानी अपनी छोटी सी सैन्य टुकड़ी लेकर अंग्रेजों से लड़ी और अद्भुत साहस का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हुई.

लेखन – निर्देशन

फिल्म का लेखन विजयेंद्र प्रसाद ने किया है. वो निर्देशक एस एस राजामौली कि पिताजी हैं और बाहुबली सीरीज समेत बजरंगी भाईजान जैसी फिल्में भी लिख चुके हैं. खुद वो सबसे सीनियर हैं तो उनका काम भी बहुत जिनियुन होता है. इतिहास से छेड़छाड़ जैसी कोई भी कोशिश नहीं की गयी है. क्योंकि ज़रूरत ही नहीं पड़ी होगी शायद. रानी लक्ष्मीबाई का जीवन किसी एक हिट फिल्म के स्क्रिप्ट से ज्यादा पावरफुल है. बात अगर निर्देशन की करें तो लोग कहते हैं निर्देशक की कुर्सी पर कंगना जबरदस्ती बैठी थी. वो अपनी स्टारडम का गलत फायदा उठाई है. इसमें कितना सच और कितना झूठ है ये तो वही जाने, लेकिन फिल्म में दोनों निर्देशकों कंगना और कृष ने फिल्म को अच्छे से एग्जीक्यूट करने की पूरी कोशिश कि है. कोशिश इसीलिए क्योंकि कहीं-कहीं फिल्म कमजोर भी पड़ती है.

manikarnika attack on britishers

अब बात कर लेते हैं मेकिंग की

किसी भी पीरियड फिल्मों की जान होती है उसका मेकिंग. ड्रेस से लेकर कॉस्ट्यूम तक का बारीकी से ख्याल रखना पड़ता है. जो कि यहाँ भी रखा गया है. फिल्म जब शुरू होती है तब दस मिनट तक ऐसा लगता है मानो कंगना ने कोई बड़ी गलती कर ली है. लेकिन फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ती है यह मेकिंग के लेवल पर और बेहतर होती चली जाती है. क्लाईमैक्स आते-आते और फिल्म खत्म होने तक आपको लगता है कि आपका पैसा वसूल हो चूका है. सिनेमैटोग्राफी का लेवल संतोषजनक रहा लेकिन एडिटिंग में फिल्म पिछड़ती हुई दिखती है.

एक्टिंग

वैसे तो पूरी फिल्म कंगना रनौत की है और वही हमेशा छायी भी रही है. एक्टिंग के स्तर पर यह उनका एक नया परिचय है. कंगना को ग्लैमर और कॉमेडी से दूर इस तरह की फिल्मों में देखना अच्छा लगता है. साथ मिला है अंकिता लोखंडे का, जो पहली बार बड़े परदे पर आयी है. लेकिन बड़े परदे पर जमने के लिए उसे अभी और मेहनत करनी होगी. अतुल कुलकर्णी, डैनी डेंजोगप्पा, कुलभूषण खरबंदा, सुरेश ओबेराय जैसे बड़े नाम है फिल्म में तो साथ में जीशान अय्यूब और जीशु सेनगुप्ता की अदाकारी भी खूब दिखती है

manikarnika actors collage

गीत – संगीत

प्रसून जोशी इस फिल्म का गीत लिखे हैं और साथ में डायलॉग्स भी. संगीत दिया है शंकर-एहसान-लॉय ने. फिल्म में कुल सात गाने हैं जिनमें से तीन से चार गाने ही फिल्म के साथ कदमताल कर पाती है. बाकी के गीत सिर्फ फिल्म का अवधी बढ़ाती है.

और अंत में: झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को अगर आप कम भी जानते हैं तो इस फिल्म को देखने बाद आप पुरी तरह से जान लेंगे. फिल्म देखते हुए आपको अच्छी लगेगी. इंस्पिरेशनल बायोपिक है तो परिवार और बच्चे भी साथ में रहे तो अच्छा रहेगा.

अपनी राय आप हमें अपनी कॉमेंट सेक्शन में दे सकते हैं और हमारे लेटेस्ट अपडेट पाने के लिए आप बेजोड़ जोड़ा के फेसबुक पर लाइक और ट्विटर पर फॉलो कर सकते हैं. हमारे वीडियो अपडेट पाने के लिए आप हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्स्क्राइब करें.

Leave a Reply