कहानी आदमखोर तानाशाह ईदी अमीन की, जो इंसानी मांस को खाता था

जब जब बात तानाशाहों की होती है हमारे दिमाग में एक ऐसे क्रूर इंसान की तस्वीर बन जाती है जो मानव के रूप में वहशी जानवर होता है। जिसे मानवता शब्द से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं होता। वो एक पागल कुत्ता, मदमस्त हाथी और वहशी शेर का मिश्रण होता है। वो बस अपने मन की करता है, फिर चाहे वो सही हो या गलत, और जो कोई भी उसके रास्ते में आता है वो उसे भी तबाह कर देता है, कुचल देता है। दुनिया में बहुत तानाशाह हुए हैं। जाने कितने नाम है – हिटलर, मुसोलिनी, सद्दाम हुसैन, कर्नल गद्दाफी और भी बहुत सारे। लेकिन आज हम जिनकी बात करेंगे वो इन सबसे बिलकुल अलहदा था। सबसे अलग, जिसकी तुलना किसी से नहीं हो सकती है, क्योंकि कोई और शायद ही इंसान की मांस को खता होगा। जी हाँ, आज हम जिसकी बात करने जा रहे हैं वो एक आदमखोर तानाशाह की कहानी है। आज हम बात कर रहें हैं युगांडा के क्रुर शासक ईदी अमीन की, जो अपने देश में खुद को दादा कहलवाना पसंद करता था।

इनके बचपन को जान लेते हैं थोड़ा

ईदी अमीन का जन्म होता है उत्तरी युगांडा के कोबोको नामक शहर में साल 1925 ईस्वी में। जगह और साल में कई जगह शहर का नाम कम्पाला और साल 1928 भी क्लेम किया गया है। ये इतने बैकवार्ड और गरीब परिवार से ताल्लुक रखता था कि इसके जन्म की तारीख भी सही-सही किसी को मालुम नहीं है। इन्होंने कभी खुद की ऑटोबायोग्राफी भी नहीं लिखी तो किसी भी बात तो फैक्चुअली सही नहीं मान सकते हैं। जो रिकॉर्ड में है हमें उसी पर भरोसा करना होगा।

ईदी अमीन के पिता किसान थे और इस्लाम का अनुयायी थे और उसकी माँ लुग्बारा जनजाति की सदस्या थी। अमीन के छोटे भाई का दावा है कि उसके बड़े भाई ईदी अमीन का जन्म युगांडा की राजधानी कम्पाला में हुआ था और उनके पिता वहा पुलिस में नौकरी करते थे। ईदी अमीन अपने जन्म के बाद से ही संयुक्त परिवार के वातावरण से अलग हो गया। आठ भाई-बहनों में वह तीसरे नम्बर पर था। ईदी अमीन ने प्रारम्भिक शिक्षा ही प्राप्त की थी परन्तु वह खेलकूद में अव्वल था। वो साढ़े छः फूट का लम्बा और मोटा आदमी था। रंग का काला होने की वजह से और इस हाइट के कारण वो किसी दैत्य या फिर राक्षस के जैसा दिखता था। मैं यहाँ पर एक बात और साफ कर दूँ कि बेजोड़ जोड़ा किसी भी तरह के रेसिज्म को सपोर्ट नहीं करता है सिर्फ ईदी अमीन के व्यक्तित्व के बारे में आपको बताया जा रहा है।

अब देखते हैं ईदी अमीन के कैरियर की एक झलक

साल 1894 में युगांडा को ब्रिटिश सरकार ने संरक्षित देश घोषित कर दिया था। यहाँ पर सेना भी ब्रिटिश की ही थी, इसे ब्रिटिश कोलोनियल या फिर ब्रिटिश औपनिवेशिक सेना कहते थे। अमीन 1946 में एक सहायक रसोईये के रूप में ब्रिटिश औपनिवेशिक सेना की किंग्स अफ्रीकन राइफल्स में शामिल हुआ। उसने दावा किया कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उसे सेना में भर्ती होने के लिए मजबूर किया गया था तथा यह कि वह बर्मा अभियान में शामिल था, किन्तु रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि सूची में उसका नाम युद्ध के समाप्त होने के बाद लिखा गया था।

1947 में उसे पैदल सेना में एक निजी सैनिक के रूप में केन्या भेजा गया था और उसने 1949 तक गिलगिल, केन्या में 21वीं केएआर (KAR) इन्फैन्ट्री बटालियन के लिए काम किया। उसी साल सोमाली शिफ्टा विद्रोहियों से लड़ने के लिए उसकी टुकड़ी को सोमालिया में तैनात किया गया। 1952 में उसकी ब्रिगेड को केन्या में मऊ मऊ विद्रोहियों के खिलाफ तैनात किया गया था। फिर उसी साल उसको कॉर्पोरेल और इसके बाद 1953 में सार्जेंट के रूप में प्रोमोशन दिया गया।

अब आ गया था साल 1962 और इसी साल 2 अक्टूबर को युगांडा आजाद हो गया। देश के तमाम राजनैतिक गतिविधियों के साल भर बाद वहाँ पहला राष्ट्रपति बनता है – फ्रेडरिक एडवर्ड मुटेसा सेकण्ड। तीन साल के बाद वहाँ दूसरा प्रेसिडेंट बनता है मिल्टन अबोटे। यह अबोटे का ही शासनकाल था जब ईदी अमीन एक सैन्य प्रमयूख के रूप में युगांडा में उभरा। 2 मार्च 1966 से 25 जनवरी 1971 तक अबोटे युगांडा के प्रेसिडेंट रहे और इस दौरान ईदी अमीन अपने सैन्य करियर में कमांडर-इन-चीफ के पोस्ट तक पहुँच गया था। यह युगांडा में सबसे बड़ा सैन्य पोस्ट माना जाता है।

मिल्टन अबोटे का तख्तापलट हुआ और युगांडा को मिला तीसरा राष्ट्रपति 

वह पहले ब्रिगेडियर जनरल, फिर मेजर जनरल के पद पर बैठा। इस तरह ओबेट और ईदी की नजदीकियां काफ़ी हद तक बढ़ गयी थीं। दोनों एक दूसरे के पक्के साथी माने जा रहे थे, किन्तु ईदी के मन में कुछ और चल रहा था। वह ओबेट का अपने रास्ते से हटाना चाहता था। यह खबर जब ओबेट को मिली तो वह ईदी से दूरियां रखने लगा। ईदी कुछ करता इससे पहले ओबेट ने उसे कूटनीति से घेरना चाहा। उसने सैन्य सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाना शुरु कर दिया।

ईदी ने इसके जवाब के लिए ओबेट के तख्तापलट करने की तैयारी शुरु कर दीं। वह युगांडा वासियों को अपने समर्थन में खड़ा करने में सफल रहा। उनके साथ से ईदी ने सबसे पहले ओबोट की जो खुफिया पुलिस थी, उसको खत्म करना शुरु कर दिया। अब धीरे-धीरे युगांडा की जनता ईदी अमीन से जुड़ने लगी थी। ईदी को अब लगने लगा था कि वो जो भी करेगा लोग उसे अपना समर्थन जरूर देंगे क्योंकि वो पहले ही जनता के मन में मिल्टन अबोटे के खिलाफ जहर भर चुके थे।

साल 1971 में मिल्टन अबोटे एक राजनयिक दौरे पर सिंगापूर गए हुए थे। यह ईदी अमीन को सबसे अच्छा मौका लगा। उसको लगा कि ऐसा मौका फिर नहीं मिलनबे वाला है। वो सेना का अध्यक्ष था ही और अब प्रेसिडेंट के सिंगापूर जाने के बाद वो युगांडा का सर्वेसर्वा हो गया था। उन्होंने पुरे युगांडा को मिलिट्री से घेर दिया और एयरपोर्ट को भी पूरी तरह से सील कर दिया गया जहाँ से मिल्टन अबोटे वापस युगांडा आने वाले थे।

मिल्टन अबोटे के वापस आते ही उन्हें एयरपोर्ट पर ही गिरफ्तार करवा दिया ईदी अमीन ने और फिर जनता को बताया कि यह सरकार बहुत करप्ट हो गयी है। कुछ दिन अगर यह और रहा तो तो युगांडा को बर्बाद कर देगा। इसीलिए जबतक इलेक्शन नहीं हो जाते है मैं ही यहाँ का राष्ट्रपति रहूँगा। जनता इस धोखे में आ गयी और फिर ईदी अमीन युगांडा का तीसरा राष्ट्रपति बन गया।

अब शुरू होता है ईदी अमीन की तानाशाही और मौत का नंगा नाच

सत्ता संभालते ही ईदी की क्रूरता अपने चरम को छूने लगी। सबसे पहले उसने उन सभी अधिकारियों और सैनिकों को फांसी पर चढ़वा दिया, जो मिल्टन अबोटे के समर्थन में थे। पहले साल में ही वह 9000 सैनिकों की हत्याओं का कारण बना। वो भी तब जब वो खुद आर्मी का चीफ भी था। ईदी की तानाशाही के चलते युगांडा की अर्थव्यवस्था डोलने लगी। यह ईदी के लिए बड़ी समस्या हो सकती थी, किन्तु उसने इसका भी तोड़ निकाल लिया। उसने सभी एशियाईयों को यह कह कर देश छोड़ने का फरमान सुना दिया कि ‘उनके पास युगांडा की नागरिकता नहीं है। इस लिहाज से उन्हें 90 दिनों के अंदर देश छोड़कर जाना होगा।

इसका परिणाम यह हुआ कि भारत सहित और बाकी देशों के 80,000 से ज्यादा लोगों को युगांडा छोड़ना पड़ा। युगांडा छोड़ने वालों को यह भी फरमान सुनाया गया कि वो अपने साथ सिरद दो ही बैग लेकर जा सकते है। वो भी उस बैग में सिर्फ कपडे होंगे, रूपये-पैसे और गहने लेकर जाने की अनुमति नहीं थी। ईदी अमीन कि अनुसार उनकी संपत्ति अब युगांडा सरकार के अधीन है। उस पर अब उनका कोई मौलिक अधिकार नहीं है।

ईदी अमीन के यातना देने के तरीकों से उसकी हिंसक सोच का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। उसने अपनी पसंद की हर खुबसूरत लड़की को न सिर्फ अपनी हवस का शिकार बनाया बल्कि उन्हें मौत कि घात भी उतार दिया गया। वह लोगों को बहुत बेरहमी से मारता था। वह लोगों को जिन्दा जमीन में दफ़न कर देता था तो कई बार तो वह जिन्दा इंसानों को मगरमच्छ के आगे डाल देता था। ईदी अमीन के हाथों  मरने वालो में आम नागरिकों के आलावा पूर्व और सेवारत मंत्री ,मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, राजनयिक, शिक्षा विद,आदिवासी नेता, पत्रकार और कई विदेशियों की संख्या शामिल है। कई जगह तो पुरे के पुरे गाँव नष्ट कर दिय गये और लाशों को नील नदी में बहा दिया गया।

आदमखोर ईदी अमीन का खुलासा

ईदी अमीन कि कुल छः पत्नियां थी और लगभग 45 बच्चे। इसका भी कोई ऑफिसियल रिकार्ड नहीं है। लेकिन इनके वहशीपना का अंदाजा इतनी बातों से भी लगाया जा सकता है। खूबसूरत लड़कियों को वह भोग विलास की वस्तु समझता था और उसका भरपूर शोषण करता था। ईदी अमीन के पास उसका एक घरेलु डाक्टर था, उसका नाम था – किबो रिन्गोता। जो उसके सेहत का नियमित ख्याल रखता था। एक बार वह डॉक्टर उसके घर में ही था और फ्रिज से पानी निकालने गया तब वो देखता है कि फ्रिज के अंदर इंसान का कटा हुआ सर और मांस रखा हुआ है।

“वह डॉक्टर वहीं पर बेहोश हो गया। होश आने पर वह किसी तरह वहाँ से निकला। हांलाकि उनकी पत्नियां भी उससे बहुत परेशान रहती थी। और वह भी वहाँ से भागना चाहती थी। ईदी ने अपनी दुसरी पत्नी अडोरा और उसके प्रेमी की भी ना सिर्फ हत्या की थी बल्कि उनके मांस को भी खा लिया था।”

ईदी अमीन के नरभक्षी होने के एक सबूत और मिलते हैं – ये 1975 का साल था जब ईदी युगांडा के मुख्य न्यायाधीश से नाराज हो गया और उनकी हत्या करवा दी। हत्या के बाद पोस्टमार्टम की कार्यवाही चल ही रही थी की तभी वहाँ ईदी अमीन आ धमका। उसने सभी डॉक्टरों को कमरे से बाहर जाने का हुक्म दिया और लगभग 30 मिनट तक उस शव के साथ रहा। जब डॉक्टर उस कमरे में वापस आये तब मुख्य न्यायाधीश के शरीर के कई हिस्से गायब थे। इस तरह ईदी अमीन का नाम इतिहास में एक आदमखोर तानाशाह के रूप में दर्ज हो जाता है।

ईदी अमीन के अंत की कहानी

यहाँ पर अगर सीधे-सीधे आपको उसके अंत की कहानी बता देंगे तो मजा नहीं आएगा। मजा तो इस कहानी में है जो हम अभी आपको बताने जा रहे हैं। ये 1978 का साल था और तारीख थी 30 अक्टूबर। ईदी ने अपनी सेना को आदेश दिया कि पड़ोसी मुल्क तंजानिया पर हमला किया जाए साथ ही उसने अपने मित्र कर्नल गद्दाफी से मदद माँगी जो लीबिया का तानाशाह था। ये युद्ध 6 महीने तक चला और तंजानिया की सेना बहादूरी से लड़ती रही। 10 अप्रैल 1979 का वो ऐतिहासिक दिन था जब तंजानिया की सेना ने लीबिया और युगांडा के सैनिकों को खदेड़ दिया और कम्पाला पर कब्जा कर लिया। कम्पाला युगांडा की राजधानी है। हालांकि ईदी अमीन इससे वहां से निकल भागने में सफल रहा और लीबिया पहुँच गया। तकरीबन दो वर्षों तक लीबिया में कर्नल गद्दाफी के पास रहने के बाद ईदी अमीन सऊदी पहुँच गया लेकिन फिर कभी पब्लिक लाइफ में उसकी कोई खबर नहीं आयी।

वह सऊदी में ही छुपकर रहता था। अबतक उसकी उम्र भी ज्यादा हो गयी थी और उसको कई किस्म की बिमारी भी हो गयी थी। 19 जुलाई 2003 को ईदी अमीन की चौथी पत्नी नालोंगो मदीना ने मिडिया को बताया कि ईदी अमीन को किडनी कि समस्या है और वो अपने वतन युगांडा लौटना चाहता है। इसपर तब के युगांडा के प्रेसिडेंट योवेरी मुसेवेनी ने यह कहा था कि “जब अमीन युगांडा वापस आएगा तब उसे लोगों को उसके किये हुए पाप का जवाब देना होगा”।  इसके बाद किसी ने भी इस टॉपिक को दुबारा नहीं उठाया और फिर 16 अगस्त 2003 को सऊदी अरब के जेद्दा में स्थित किंग फैजल स्पेशलिस्ट हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में उसकी मौत हो गयी।

इस स्टोरी का वीडियो यहाँ देखें:

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